खुद से अंतर्द्वंद्व
खुद से अंतर्द्वंद्व
मेरा ये है कि जिसकी हकीकत पता है मुझे,
उस ख़्वाब को पाना चाहता हूँ मैं।
मेरे घर की रोटी से अब पेट नहीं भरता,
अब किसी भूखे के घर खाना चाहता हूँ मैं।
जिनके पूछने पे मेरा हाल सुधरता नहीं,
उन्हें उन्हीं के हाल पे छोड़ आना चाहता हूँ मैं।
जिन्होंने सिखाया है मुझे चुप रहना,
आज उन्ही के सामने बार-बार चिल्लाना चाहता हूँ मैं।
जिस गलती की सज़ा भुगत रहा आज तक,
उस गलती को फिर से दोहराना चाहता हूँ मैं।
किसी और की बात नहीं करता मैं आज,
अपनी ही मर्ज़ी के खिलाफ़ जाना चाहता हूँ मैं।
