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RAJNI SHARMA

Tragedy Children

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RAJNI SHARMA

Tragedy Children

खोया सा बचपन

खोया सा बचपन

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जिम्मेदारी के बोझ तले बचपन कुछ कुचला हुआ सा है

छोड़कर खेल खिलौने मन-तन कुछ बिखरा हुआ सा है ‌


पोथी क्यों रूठी- रूठी सी है, हृदय कुछ व्याकुल सा है

सवेरे के उजले लिबास में हर शाम कुछ उदास सी है


मन को मारने की अब तो अजीब सी आदत हो गई है

मैले कुचैले वस्त्रों की दुर्गंध ही किस्मत बन गई है


हाँ साहब, दौड़कर आना, सुनने की सवालियत बन गई

अभावग्रस्त होकर सम्मान की रोटी खाता हूँ,

छोटू नाम से जाना जाता हूँ,


असली नाम भूलकर अपने काम में ही मस्त- व्यस्त हो जाता हूँ

स्कूल वर्दी के स्वप्नों में अक्सर खुद को देखकर खुश हो जाता हूँ।


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