खिलखिलाहट निर्धन की
खिलखिलाहट निर्धन की
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पैसों से भले ही गरीब हूँ
शोषित हूँ, दीन, मलीन हूँ
भले मेरे पोर-पोर में दर्द है
पर प्रभु मेरे हमदर्द है।
हाथ थाम लेते हैं मेरे वो
ह्रदय से जब भी पुकारती हूँ
बेटा बनकर आ गए प्रभु
खुश हो हो उन्हें निहारती हूँ।
कभी आओ मेरी झोपड़ी में,
बड़ी सी खिलखिलाहट होगी
चारों ओर उजाला होगा
उदासी- कहीं नहीं होगी।