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अधिवक्ता संजीव रामपाल मिश्रा

Tragedy

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अधिवक्ता संजीव रामपाल मिश्रा

Tragedy

कहीं रोज तुमसे न मिलती नजर. .

कहीं रोज तुमसे न मिलती नजर. .

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कुछ रोज मिलने तो आओ सनम,

हकीकत न सही ख्वाबों में सनम।

कहीं रोज तुमसे न मिलती नजर,

जैसे दिल ए बागवां में सूखे फजर।

चलती हवायें सरसर सांसों में जैसे,

बहती सरितायें कलकल आंखो में जैसे,

बुझती नहीं तमन्नायें दिल की कभी,

जबतक दिखती नहीं तुम यादों में जैसे।

आखिर कब तलक तुम्हारा आना होगा,

मालूम नहीं कबतक इंतजार करना होगा।

कभी तो सोचो सदियां बिताने के बाद,

कबतक दूर दूर रहोगे पास होने के बाद।

कुछ तो होगा आंचल मेरे प्यार का दुखड़ा,

आ जा झलक दिखला जा चांद सा मुखड़ा‌।

तेरे प्यार में जीना मरना ही होगा जीवन में,

अब दिल नहीं लगता जबसे तुमसे बिछड़ा।



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