खिड़की
खिड़की
फड़-फड़ फड़कती हुई खिड़की,
उसमें से देख रही है एक नज़र,
डरी सहमी हुई घबराती हुई नज़र,
चाह रही है कोई उसे पिंजरे से उड़ाले जाए !
कभी न रुखे और कभी न मुड़े,
उड़ती रहे खुले आसमानों पर,
बनाए अपनी नई डगर,
फड़-फड़ फड़कती हुई खिड़की !
उसमें से देख रही है एक नज़र,
टुकुर-टुकुर चाह रही है,
कोई उसे राही मिल जाए,
निकाले उसे इस डगर से उस डगर !
टिप-टिप करते आँसू कह रहे हैं कहानी,
की कोई तो आए तोड़े यह,
जंजीरें और कर दे उसे रवानी !
बहुत सारे प्रश्न कह रही है,
आँखें जो देख रही हैं टुकुर-टुकुर,
बन पंछी उड़ चली यह दीवानी,
अब देख रही है पीछे बस एक खिड़की !