खिड़की वाली सीट
खिड़की वाली सीट
वो ट्रेन की खिड़की वाली सीट,
जहाँ हर पल कुछ नया नजर आता है,
और हर पल कुछ छूट जाता है,
उस एक पल के जीने में,
जीने का सार समझ आता है।
वो आती हुई उम्मीदों के,
गुजरी यादें बननें तक,
छूट जाते हैं घर-बार, समझ आता है।
वो ठहरे हुए पेड़,
ओर चलता हुआ सूरज,
जो अपने और पराये का भेद बताते हैं।
झीलों में उतरी हुई परछाई,
और हवा में लिपटे हुए गीत,
उन छोटे लम्हों से दास्तां बनाते हैं।
वो पटरियों की रेखा जिनके छोर नहीं दिखते,
वो खिड़की की सीट जहा रास्ते दोनों ओर नहीं दिखते।
ट्रेन के अंदर जहाँ अपने मन का-सा शोर रहता है,
और खिड़की के बाहर उसका ख्याल,
जो मीलों तक साथ बहता है।।