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Punit Singh

Tragedy

4  

Punit Singh

Tragedy

ख़ुद से किये वादे

ख़ुद से किये वादे

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आज फिर घुटन सी है मेरे दिल में,

आज फिर से कोई तार छिड़ गया है मेरे मन का,

जो बात मैं लफ़्ज़ों से कह ना पाया,

वो बात मेरे सुर्ख अश्कों ने बयां कर दी है आज फिर से।


ख़ुद से किया एक और वादा

आज ज़मींदोज़ होते दिख रहा है,

ख़ामोश आवाज़ से

टूटता सा महसूस हो रहा है,


फ़िक्र हो रही है मुझे मेरे

कल की आज एक बार फिर,

ज़िन्दगी की दौड़ में अकेले पिछड़ता सा

दिख रहा हूँ आज फिर से।


वादे तो यूँ पहले भी टूटे हैं तेरे भी और मेरे भी,

पर उन वादों से ज़ख्म न हुए थे वो गहरे,

आज जो एक वादा टूट सा रहा है मेरा खुद से,

चीख़ चीख़ के कह रहा है की कुछ न कर सके ख़ुद के लिए आज फिर से।


दर्द का आलम न पूछों इस सपनों के सौदागर से, ख़ून नहीं है काटने पे,

वो लाल रंग भी साथ छोड़ने चला है आज मेरा,

हमेशा बिखरता सा देखा है मैंने सपनों को और अपनों को,

डरने लगे हैं ना किये हुए वादे भी आज फिर से।


शिद्दतों से देखे थे छोटे से प्यारे से सपने कभी बचपन में,

मुद्दतों बाद हासिल करने चला था उन मंज़िलों को ख़ुद से,

डरने लगे हैं सपने भी साथ आने को आज मेरे,

रुकावट में भी ऐसी रुकावट आयी है आज फिर से।


ये भी कैसी ज़िन्दगी है, कैसा मंज़र है, समझ नहीं आता,

क्यों सपनों को पाने जाते हैं लोग अपनों को छोड़ के,

जो बात मैं लफ़्ज़ों से कह न पाया,

वो बात मेरे सुर्ख़ अश्क़ों ने बयां कर दी आज फिर से।


कैसे करूँ मैं वो वादा वफ़ा का ख़ुद से,

उँगलियाँ भी कट सी गयी हैं इन टूटे तारों को जोड़ने में,

सुलगते हैं हाथ और जल उठता है रोम रोम,

जब सोचता हूँ संभाल लूँ इन बिखरते हुए लम्हों को आज फिर से।


पर ऐसा अभी भी है कोई पास मेरे,

जिसके एहसास से यक़ीन हो जाता है इस दिल को,

कि दूर नहीं वो सूरज मुझसे, जो उगेगा और मैं कहूंगा,

पूरे हो गए हैं ख़ुद से किये वादे आज फिर से।


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