एक नया जहान
एक नया जहान
वक़्त धीरे धीरे अपने पांव बढ़ता गया,
और धीरे से सब बदल सा रहा है,
दिन बीते, महीने बीते और बीते साल,
पुरानी मेहनतें अब रूप ले रही है।
एक नया सफर रूप ले रहा है,
और रूप ले रहा है नया जहान,
इस परिवर्तन को रुकने न देना है,
ना रुकने देनी है एक नई शुरुआत।
थके चाहे जितने हो ये कदम,
थमना नहीं है, बढ़ाते रहना है इन्हे,
आखिर कितनी ही दूर होगी मंज़िल अपनी,
थोड़ी ही सही, उससे दूरी घरते रहना है।
थोड़ा हौसला तुम रखो,
थोड़ा मैं बाँधे रखता हूँ ,
कठिन राह जरूर है अपनी,
हाथ तुम्हारा थामे रखता हूं।
देखते देखते पहुँच जाएँगे मंजिलों पर हम अपनी,
और रहेगा ये सफरनामा एक दास्तान बन के,
बस बावला और पागल बने रहो सफर में अपने,
ये एक नई शुरुआत बना देगी एक नया जहान अपना।