STORYMIRROR

Punit Singh

Others

4  

Punit Singh

Others

चकाचौंध वाले सपने

चकाचौंध वाले सपने

2 mins
387

अंधरा जाती है ज्योति मेरे नयनों की,

क्षीर्ण पड़ जाती हैं ध्वनि कर्णों की

देखता हूं जब मैं वो वाले सपने।


कुछ दिखता नहीं, ना सुनाई है देता,

हो जाता है सवार एक पागलपन,

देखता हूं ‌जब मैं वो वाले सपने।


बुझ चुके कोयले मेरी रूह के,

लगती है पनपने एक चिंगारी उनमें,

देखता हूं जब वो वाले सपने।


कितनी आस कितनी उमंग होती है,

कितनी भावनाएं जाती हैं जग,

कितने रौशन होते हैं वो वाले सपने।


कि कभी मिल जाये तीन टाइम की रोटी,

या रहे सर्दी में पास रजाई, एक जैकेट,

कितने गर्म होते हैं वो वाले सपने।


उस तड़पते हुए बेचारे को,

मिल जाये एक बोतल ख़ून और इलाज,

कितने दर्द भरे होते हैं वो वाले सपने।


कुछ किताबें पढ़ पाएँ वो बच्चे,

जल चुके हैं हाथ जिनके कोयले से,

कितने आशावादी होते हैं वो वाले सपने।


पास रहें कुछ सपने, कुछ अपने,

उन बुड्ढों के भी,

जो पड़े भूखे, रैन बसेरों में गुज़ार देते

हैं रातें,

कितने अकेले होते है वो वाले सपने।


लबों पे रहे दुआ हमेशा हमारे,

और मरते में न निकले "आलू" मुँह से,

बहुत भूखे होते हैं वो वाले सपने।


न नोच खाये कोई दरिंदा,

उसके नाज़ुक कोमल तन को,

कितने डरावने होते हैं वो वाले सपने।


मिलती रहे उमंगें उन्हें जीने की,

राहों में कुछ ऐसे कंकड़ मिलें,

कितने टूटे होते हैं वो वाले सपने।


क्या देखेंगे हम सपने चंद सितारों के,

बस कुछ टुकड़े ही नसीब हैं हमें हज़ारों के,

बहुत छोटे होते हैं वो वाले सपने।


हमें आस नहीं कि हमें जाने कोई,

हम गुमनाम ही ज़िन्दगी काटते हैं,

और ऐसे ही हैं हमारे वाले सपने।


हमें चाह नहीं अमीरीयत की,

हम तो आपके रहमों पर हैं,

और यही हैं हमारे चकाचौंध वाले सपने।


Rate this content
Log in