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राही अंजाना

Abstract

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राही अंजाना

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खेल

खेल

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अपने आप से ही एक जंग जारी रक्खा करो,

खेल कोई भी हो पर अपनी बारी रक्खा करो।


दुश्मन हर कदम पर बैठे हैं नज़रें गढ़ाए यहाँ,

हो सके तो दुश्मनी में भी कहीं यारी रक्खा करो।


फैलाकर हाथों को यूँ ज़रूरी नहीं हो मुराद पूरी, 

खुदा के दरबार में कोई बात तो खारी रक्खा करो।


छिपाकर चेहरा भला कब तक रहोगे इस बस्ती में,

के बनाकर कोई तो पहचान 'राही' भारी रक्खा करो।


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