खेल का जश्न
खेल का जश्न
दिलों की धड़कनों को कहो
फिर बेधड़क होके धड़के
कुछ अनजानों के साथ
आशयों का कारवां फिर निकले।
नज़रों से टपकेंगे सपने अब कई
एक सी मुराद लिए अलग से चेहरे
कारवां बदला सा होगा हर कहीं
सारी गलियों से गुज़रके
मंज़िल की तलाश बस यहीं।
गूजेंगे शहर एक अनूठे शोर से
उम्मीद के बिगुल, खेल के जशन
फिर सुर कई मिलेंगे
इक नए राग को पिरोने।
भूल के रंजिश
जीत की ख़ुशी में भिगोने।
