कहानी किसान की!!
कहानी किसान की!!
में जगत का तात
कहता हूं जोड़ के दोनों हाथ..!
कहता हूं अपनी कहानी
भर के इन आंखों में पानी
मेरा दर्द सबने है जाना
फिर भी ना जाने क्यों है सबसे अनजाना.!
कहलाता तो हूं मैं; "जगत का तात"
फिर भी ना जाने क्यों हूं हर पल अनाथ
क्यों नहीं सुनता कोई मेरी अरदास!
वैसे तो हूं मैं"अन्नदाता"..
फिर भी तरसता हूं दो वक़्त की रोटी को
मेरा ही पैदा किया हुआ धान
में ही खरीदता हूं चुका के दुगने दाम!
वैसे तो ....
"जय जवान, जय किसान, जय विज्ञान"
कहता है पूरा हिन्दुस्तान..!
p>जवान की शहादत पर
शोक मानता है पूरा हिंदुस्तान
नवाजा जाता है दे के वीरचक्र का सम्मान!
विज्ञान की तरक्की पर
नाचता है पूरा हिंदुस्तान
नवाजा जाता है दे के पुरस्कार!
जब जब ये धरती बंजर हुई
जैसे लगा हो दिल पर खंजर कोई
नहीं बरसा एक बूंद भी पानी
मिट्टी में मिल गई मेरी जिंदगानी
ब्याज के बोझ तले डुबके
थक हार के मौत को गले से लगाई!
मेरी मौत पर कहां था ये हिंदुस्तान?
क्यों नहीं की किसी ने मेरी दरकार?
क्यों नहीं सुनी किसी ने मेरी पुकार?
क्यों मैं नहीं किसी पुरस्कार और सहायता का हकदार?