कहानी जलियांवाला बाग़ की
कहानी जलियांवाला बाग़ की
एक कहानी एक रात की,
काली इंग्लिश वारदात की,
क्या दिवस था क्या अंधेरा,
भानु पर गहरा सा पहरा,
रक्त अश्रु रोता गगन था,
पात पात सहमा सा मन था,
पर ना सहमे वीर थे वो,
बांधे कफ़न मस्तक बदन को,
बढ़ते रहे थे प्राण जब तक,
ना रुकी थी सांस तब तक,
खोते बिछड़ते साथ की,
हिम्मत की है कुछ आघात की,
एक कहानी एक रात की,
काली इंग्लिश वारदात की|
बैसाखी का दिवस नया था,
चहुँ ओर उल्लास था,
हर एक भारतवासी के मन में,
नव जोश का आह्लाद था,
शांतिपूर्ण सम्मलेन करने,
दल उत्साही एकत्र हुआ,
पर कुलिष अंग्रेजों ने क्या,
नीच पतित षड्यंत्र किया,
षड्यंत्र की काली रात की,
कुटिल इंग्लिश प्रतिघात की,
एक कहानी एक रात की,
काली इंग्लिश वारदात की|
जाग रही थी जनता जैसे,
इंग्लिश शासन डोल रहा था,
दासतां अब नहीं सहेंगे,
हर मन आक्रोशित बोल रहा था,
नींव उखड़ती देख के अपनी
गोरे कुछ घबराए थे,
इसी घबराहट में डायर ने,
निहत्थों पर गोले बरसाए थे,
जन्म मृत्यु के साथ की,
अनकहे सहस्त्रों जज़्बात की,
एक कहानी एक रात की,
काली इंग्लिश वारदात की|
जलियांवाला बाग बना,
गवाह एक इतिहास का,
भारत के संघर्षों में,
आज़ादी के विशवास का,
बरस रही थी इंग्लिश गोली,
निर्दोष और निहत्थों पर,
सीना चौड़ा किए खड़े थे,
बच्चे बूढ़े अन्य सभी जन,
एक निर्भीक सी सौगात की,
एक अमर दिवस प्रज्ञात की,
एक कहानी एक रात की,
काली इंग्लिश वारदात की।
