कहाँ जाऊं?
कहाँ जाऊं?
चल पड़े यूँ ही सूनी राहों पर,
कभी साथ थे ही नहीं जैसे
तुम उन हल्की सरसराहटों में,
दरख्तों पर लिपटी हुई लालिमा
जैसे सुस्त है पत्तों पर,
तेरी यादें भी उस तरह ही
ठहरी है मेरी साँसों पर।
गुज़रती हुई हवा सहला गयी
इस तरह तन को,
छुआ था तेरी साँसों ने जैसे
उस दिन मेरे बदन को
तेरे बिन रास्ते तो रहे अपनी जगह पर,
पर जाते कहाँ हैं भूल गए बताना वो।