खाली बोतलें
खाली बोतलें
पानी की दो बोतलें
दोनों आधी आधी भरी हुई
और आधी खाली खाली
दोनों कर रही थी बातें
पहली वाली कुछ उदास थी
शायद आधी खाली होने का मलाल था
आँखों में आँसू थे
रो रो कर बदरंग हुई जा रही थी
पानी भी मटमैला सा हो रहा था
दूसरी वाली ख़ुश थी प्रसन्नचित्त थी
आँखों में चमक थी।
शायद अपने आधी भरी होने पर ख़ुश थी
चेहरे पर अजीब सा निखार था।
मैं डाइनिंग टेबल पर बैठा देख रहा था
दोनों की बातें सुन रहा था।
और मुस्कुरा रहा था
उन दोनों के अलग अलग नज़रिये पर।
पहली बोतल का सोचने का नज़रिया
हताशा से भरा था
अपनी सफलताओं से ख़ुश न होकर
अपनी असफलता पर दुःखी हो रही थी।
हम में कुछ इन्सान भी तो ऐसे ही हैं
अपनी सफलताओं से प्रेरित न होकर
अपनी असफलताओं से कुन्द होते रहते हैं
और आगे बढ़ने की कोशिश छोड़ देते हैं
बस कोसते रहते हैं
खुद को
माता पिता को
समाज को
और जो थोड़ी बहुत सफलता मिली हुई होती है
उसे भी बेमानी कर देतें हैं।
दूसरी बोतल अपनी आधी भरी होने पर
ख़ुश थी
कुछ ऐसे इन्सान भी होते हैं जो
अपनी छोटी छोटी असफलताओं से घबराते नहीं
उनका कारण तलाशते हैं
अगर सुधार सकते हैं तो फिर कोशिश करते हैं
नहीं तो राह बदल लेते हैं
अपनी छोटी छोटी सफलताओं की सुखद अनुभूति
और असफलताओं के अनुभवों के साथ
और एक दिन बड़ी सफलता उनके कदम चूम लेती हैं।
तभी कुछ ऐसा हुआ जिसने
जिन्दगी का यही सबक दोहरा दिया।
मेरी पत्नी वहाँ आई
उसने पहली बोतल को बदरंग होते देखा
और उठाकर उसका पानी गिरा दिया
और बोतल को साफ करने के लिए
सिंक में रख दिया
और दूसरी बोतल में पूरा पानी भरकर
उसे फ्रीज में रख दिया।
एक बोतल पूरी भर चुकी थी।
सफलता उसके कदम चूम रही थी।
दूसरी बोतल अपनी नकारात्मकता के कारण
पूरी खाली हो चुकी थी।
तभी नौकरानी ने आकर पत्नी से कहाँ
“दीदी, यह बोतल तो पूरी ख़राब हो चुकी है
साफ नहीं होगी, क्या करूँ ? “
पत्नी ने उस बोतल को
कचरे वाले को देने के लिए कह दिया।
जो लोग सदा नकारात्मक बातें करते हैं
उन्हें समाज से यही सलूक मिलता है।
अब आपको कौन सी बोतल बनना है
यह आपको सोचना है।
निर्णय आपका……..।