कह भी दो
कह भी दो
नहीं.. नहीं आज मत जाओ
मुझे यूँ तड़पता छोड़ कर,
कैसे गुज़रेगी ये बैरन रात तुम बिन,
कैसे सँभलेगा ये पागल दिल तुम बिन।
यूँ ना खफ़ा हो के जाओ मुझसे,
माना कि मैंने नहीं कहा तुमसे वो ,
जो सुनना चाहते थे तुम मेरे लबों से ,
तुमने भी तो इज़हारे-इश्क नहीं
किया।
तुम ही कह दो तो शायद मेरे शब्दों
को भी ज़ुबाँ मिल जाए।
मैं भी तो सुनना चाहती हूँ
वो अलफ़ाज़ प्यार के, वो ढाई
अक्षर प्रेम के।
मैं भी तो जानूँ कितनी जगह रखते हो
दिल में मेरे लिए, मत जाओ आज...
लगा कर के गले आज प्यार से मेरी
ज़ुलफों को सँवार दो,
रखने दो सर मुझे अपने शाने पे,
थोड़ा सा मुझे आराम दो,
नहीं चाहिए मुझे तोहफे़ तुम्हारे ,
बस थोड़ा सा मुझे प्यार दो।
बोल दो आज तो प्यार के दो लफ़्ज़
बस वही काफ़ी है मुझे जीने के लिए।
कह दो.... हाँ आज कह दो
दो बोल प्यार के ,
ना जाने फिर ये वक्त मिले
ना मिले ...कह दो.....