कच्ची नींव
कच्ची नींव
चमकते , रंगीन सपनों को हकीक़त बनाने की ,
कुछ कामयाब कोशिशों ने ।
तमाम आंखों में जुगनुओ सी रोशनी भर दी,
यह भुला कर , कि नाकामयाबी भी दस्तूर रहा,
हर दौर , हर ज़माने में।
नींव भरने के लिए ज़रूरी सामान सी,
असफलताएं , इमारत का अहम हिस्सा है।
यह बताना भूलते जा रहे हैं।
फिर प्रश्न करतें हैं अनगिनत ,
सुशांत, प्रशांत या कोई भी नाम ,
हमारे बेहद करीबी का भी हो सकता है।
वो क्या उत्तर देते ? सिखाया नहीं गया नींव भरना?
जुगनुओं की चमक दिखाते रहे दूर से।
पकड़ लोगे , तो बदबू ही हाथ लगती ।
क्या जुगनू की असलियत बताई थी?
नहीं ना , नहीं बताया कभी भी ,जुगनू
चमकते , बदबूदार कीड़े हैं ।
चमक देख , उन्हें पा लेने की चाह न करना।
दूर से देख खुश हो लेना।
कच्ची नींव , पर खड़ी ईमारत क्या उत्तर देती।
गिरने के सिवाय।
दोष ईमारत का ? लगता है, पर है नहीं ।
दोष मिस्त्री का , जो ईमारत सजाते रहे।
मंजिलें बढ़ाते रहे,
कच्ची नींव पर।