कभी सोचा न था
कभी सोचा न था
हालात कुछ ऐसे बदले
लकीरों ने
कि कभी सोचा भी न था
हम हर लम्हें तड़पे इस कदर
कि तुमने जाना भी न था
हर रोज़ सवालों के कटघरे
में खड़े करते हैं खुद को
पर कोई जवाब आना ही न था
हजार शिकवे थे तुमसे पर
हमें कुछ कहना ही न था
अब तो हँसते हुए हमें आँसुओं
के समन्दर को पीना ही था

