कभी रो लेना
कभी रो लेना
1 min
375
सुनो,कभी रो लेना
तनहाई में कभी पलकें भिगो लेना।
जाने किन गलतियों के बोझ तले दबे जाते हो
कितने ही चेहरों से नज़रें नहीं मिला पाते हो
कुछ तो शर्मिंदगी का वज़न ढो लेना
कितने अरमान टूटे होंगे,सपने कितने रूठे होंगे
चुन के टुकड़े उम्मीदों के फिर से
ख्वाबों की दुनिया को सँजो लेना
नींद आई नहीं ,कई रात तुमने जागी है
उनको पाने की कई बार दुआ मांगी है
रख के सिरहाने उनकी याद,ज़रा सो लेना।