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Surendra kumar singh

Romance

4  

Surendra kumar singh

Romance

कभी कभी

कभी कभी

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कभी कभी,आते जाते हुये मौसमों में

शरीर का भी मौसम आ जाता है

और जब भी आता है

सारे मौसमों के रंग

शरीर के मौसम में घुल जाते हैं

लगता है एक ही मौसम है

अजनबी सा सारे

मौसमों से परे।

आंख समझने लगती है आंख की भाषा

दिमाग पढ़ने लगता दिमाग को

मन खो जाता है शरीर के मौसम में

श्वांस बजने लगती है संगीत सी

दिल संगत करने लगता है

धड़क धड़क कर। 

विचारों की दुनिया में

आने लगते हैं नये विचार

और ये सब किसी को सुंदर लगता है,

कोई जानबूझकर अनुपस्थित हो जाता है

होते हुए भी न होने की तरह।

पर यह है नया प्रेम

यानि कि शरीर का मौसम

जीवन देने वाला जीवन के मौसम को

रिफार्म कर रहा है।


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