STORYMIRROR

Abhilasha Chauhan

Tragedy

4  

Abhilasha Chauhan

Tragedy

कबाड़

कबाड़

1 min
71


श्वेत केशों में

समाए अनुभव

मिचमिचाती आँखों से

निहारती ड्योढ़ी को

रह-रह कर भरती उसाँस

पोंछती आँसू की कोर

वह बैठी 

निस्सहाय जर्जर गात

यादों के जंगल में

ढूँढती खुशियाँ

भरे-पूरे घर की चहक

दीवारों से सुनती

लटकते मकड़ी के जाले में

देखती बंधन

जिसने बाँध रखा है उसे

उन यादों से

जो बेवजह देती है दुख

बरसता आँखों से पानी

झुकी कमर पर

लादे बोझ उपेक्षा का

बैठी आस खिड़की खोले

कि कभी तो कबाड़ भी

आ जाता है काम

शायद........…

भोर की उजली किरण

जला दे चूल्हा

बजने लगे बर्तन

नाचे सुगंध

और पोंछ कर आँखों की कोर

टूटी चारपाई पर

पड़ जाती है ज्यों पड़ा हो

कंकाल कोई...!!



Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Tragedy