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Bhavna Thaker

Tragedy

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Bhavna Thaker

Tragedy

कौन पहचाने

कौन पहचाने

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मुस्कान में पड़ रहे बल को कौन पहचाने

अश्कों के ज़रिए एक आग पी रही फूतरी को कौन जानें 

बंदिनी दीपक लिए गम का हाथों में भटक रही पहचान को तलाशते कोई क्या मानें।

जीवन यज्ञ में आहुतियां देते थक गई उस नारी की सोच की परिधि कोई क्या मापे।

मौन की तुरपाई से जोड़ लिए लब शब्द घट से आज़ादी लफ्ज़ का नाश किए

बंदिश अपना कर मौनी कहलाती अबला की पीर कोई क्या समझे।

शीत अहसास साँसों में भरे ना इस घर की ना उस घर की कहलाए

वजूद को तरसती कुछ अभागिन की उलझन ना मैं जानूँ ना तू जानें 

नहीं बदला कुछ भी चंद मानुनी के लिए दो सदी पहले की दहलीज़ पर खड़ी

लाँघने को बेताब देहरी ब्याहता की असमंजस दुनिया में कोई ना पहचाने।

सदियों से विमर्श की कहानियों से लिपटी साड़ी का पल्लू संभालें

शराबियों के पैरों तले रौंदी जा रही दर्द की मूरत को कौन तराशे।


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