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आचार्य आशीष पाण्डेय

Romance Others

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आचार्य आशीष पाण्डेय

Romance Others

कौमार्यखण्डी।।

कौमार्यखण्डी।।

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      ।।पति।।

प्रिये! देखो मेरे हृदय छवि तेरी नित बसी

अरे तू ही आत्मा सखि! तुम बिना जीवन नहीं।

नहीं रुठो ऐसे हृदय यह मेरा तव प्रिये!

कभी देखी हो क्या? हरि बिन हरि शोभित कहीं।।


       ।।वामा।।

चलो जाओ झूठे निकट नहीं आना तुम कभी

मुँदे आंखें लाना अनल सह छूना तुम तभी

नहीं जानी होती दुख न कुछ होता प्रिय! मुझे

दया रे निर्मोही! कमल मुख आई नहीं तुझे।।


        ।।पति।।

खिले पद्मों से तुम कमल मुख मेरा क्षण तको

धरा द्यो से मेरा गगन क्षिति प्यारा सखि! चखो

नहीं ऐसे देवी! दिवसरजनी आहत करो

चलो छोड़ो उत्सव मुदित कर माला उरु रखो।।


        ।।वामा।।

नहीं दालें तेरी गल न सकती हैं अब यहां

मुझे भूलो जाओ अपर सखि हो हे प्रिय! जहां।

किया जो भी तूने उचित न किया है प्रिय सुनो

लुटी सारी माया तन इक बचा ये तन हनो।


        ।।पति।।

हुई तुत्था भारी सखि! कर वही जो उचित हो

मुझे कोसो डांटो पर सखि! न रुठो मुदित हो

अरे तेरा मेरे कर-कर हो काया सफल हो

बिना तेरे मेरी सतत यह काया विफल हो।।


       ।।वामा।।

कहो चाहे जो भी हृदय यह मेरा दुख दहे

नहीं मानो प्यारी हृदय यह मेरा नित कहे।

नहीं रोया पाया समय विपदा को नित सहा

 करूं क्या हे स्वामिन्! रुदन मन मेरा कर रहा ।।


      ।।पति।।

जरा देखो वामे! बिन तव दशा क्या? दिख रही

कहो बैठी कैसे? तनु मम कुचिन्ता चख रही

नहीं है क्या? तेरे प्रणय हिय मेरा रह गया

अरे तेरे होते मन अपर कैसे? बह गया।।


      ।।वामा।।

बहा तो सोचे क्या? विषय सुख लेता मन रहा

पचाया था तूने गरल हिय तेरा जब वहां।

भुजंगी काया में भुजंग सम काया तव रमी

कहो क्या? काया में प्रिय! रह गयी थी कुछ कमी।।


       ।। पति।।

उठा बैठी बोलो सतत करता मैं नित रहूं

नहीं होगी कोई अपर तन मेरे सच कहूं।

क्षमा दे दो वामे! तुम बिन न मेरा मन लगे

अरे संगी हो तो जगत सु तभी लोचन जगे।।


किया जो भी स्वामिन् ! सुखद नहीं होगा अब मुझे

क्षमा देती ऐसा पर न करना हे प्रिय! कभी

विचारो मेरा ये सुभग कर तेरे कर मिला

निभाना ये रिश्ता प्रिय न रह जाये कुछ गिला।।




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