कैसे चले देश उन्नति के पथ पर ?
कैसे चले देश उन्नति के पथ पर ?
अपने ही अपनों के हृदय पर ,ऐसी कर रहे चोट ,
लकड़ी ही जंगल को काटे, बन कुल्हाड़ी की मोंठ ।।
सत्ता को हथियाने की जद में मची है ऐसी होड़ ,
छल रहे धूर्त, गदर्भ जैसे ,छाल गाय की ओढ़ ।।
भ्रष्ट लोकतंत्र धन के बल पर खरीद रहा है वोट,
सत्य का चोला पहने हैं पर मन में इनके खोट ।।
राजनीतिक स्वार्थ के चलते आगज़नी ,हिंसा और विरोध ,
कैसे चले ये देश उन्नति पथ पर ,जब अपने ही बने हुए अवरोध ।।
लोकतंत्र के चौथे स्तम्भ का भ्रष्टाचार से गठजोड़ ,
अपना धर्म भूल पेश करें ये खबरें तोड़ मरोड़ ।।
गरीब, लाचार मज़लूम को लूटने में, नहीं करें संकोच ।
असहाय निरीह प्राणी को जैसे,भूखे गिध्द रहे हों नोच ।।
कब तक रहेंगें हम तुम मौन ,कब तक मनाते रहें हम शोक ?
कैसे होगी प्रगति देश की, कैसे बदलेगी ये सोच ?