अपने ही अपनों के हृदय पर ,ऐसी कर रहे चोट , लकड़ी ही जंगल को काटे, बन कुल्हाड़ी की मोंठ । अपने ही अपनों के हृदय पर ,ऐसी कर रहे चोट , लकड़ी ही जंगल को काटे, बन कुल्हाड़ी की...
धूर्त अपनी आदत नहीं छोड़ता है ! धूर्त अपनी आदत नहीं छोड़ता है !
वह तो चांद पर जाना चाहती थी,क्यों गर्त में खदेड़ दिया तुमने।। वह तो चांद पर जाना चाहती थी,क्यों गर्त में खदेड़ दिया तुमने।।