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Writer Ajooba:

Tragedy

3.7  

Writer Ajooba:

Tragedy

जवान लड़की

जवान लड़की

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उसकी आंखो में शर्म ही नहीं,कुछ आंकाक्षाओं को तो गिन ले।

है धूर्त व्यक्ति !केवल अपनापन ही नहीं,उसके जज्बातों को तो सुन ले।।


उस नादान बेटी के अश्कों में,क्यों विष बिखेर दिया तुमने।

वह तो चांद पर जाना चाहती थी,क्यों गर्त में खदेड़ दिया तुमने।।


इस समाज में रहकर ,इस समाज से जुदा कर देते हो तुम उसे।

सारा इस समाज का ही तो कुसूर,जो हैवान कर देते हो तुम उसे।।


गली - गली,हर मोहल्ले में तंग कर देते हो तुम उसे।

वह सफेद कागज नहीं,जो बदरंग कर देते हो तुम उसे।।


इतना मजबूर मत कर देना उसे,की छोटी सी बात एक पंगा बन जाए।

इतना दूर भी मत कर देना उसे,की उसके बदन के कपड़े फंदा बन जाए।।


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