बेटी पढ़ाओ
बेटी पढ़ाओ
एक नन्ही बच्ची,
जिसकी आंखों से आंसू गिर रहे थे लगातार।
कारण पूछने पर कुछ हैरान व बेबस हो गया था मैं,
"भैया के साथ स्कूल नहीं ले गए मुझे पापा"।
ऐसा कब तक चलेगा ?
क्या बेटियों कभी बेटा नहीं बन पाएंगी ?
क्यों कर दिया ऐसा मतभेद तुमने ?
तुम्हारे इस भेदभाव से
तुम्हारे इस महापाप से,
आज ईश्वर की आंखे भी समन्दर बन रही है।
पुरानी परंपराओं में क्यों फंस रहे हो ?
क्या गार्गी शकुंतला और अत्रि गंवार थी ?
किसने बनाए ये नियम ?
क्या तुम इन्हें तोड़ नहीं सकते ?
सही ना !
तुम्हारे पास इन्हें तोड़ने के लिए
सामर्थ्य ही नहीं है।
या फिर,
बेटियों के नाम पर स्कूल फीस नहीं है।
यदि नहीं पढ़ाओगे लड़कियों को,
तो पांचवीं पास,आंठवी पास बधुओं को ढूंढते रह
जाओगे।