धूर्त
धूर्त
धूर्त अपनी आदत नहीं छोड़ता है
सच् मे हसता है, झूठ मे रोता है
बांते करता है पर वो ना सुनता है
शातिर इतना कि भविष्य बताता है
पास है जिसके वो अनिष्ट कराता है
सच् है !
धूर्त अपनी आदत नहीं छोड़ता है !
दिल से जो सुन्दर है ,मिलते ही अंदर है
ऐसा होना ही , इसको भाता है
उनकी तो ये पूरी बाट लगाता है
शातिर इतना कि सब कष्ट दिलाता है
मिल जाये ज़िसको, भ्रष्ट बनाता है
धूर्त अपनी आदत नहीं छोड़ता है !
पहचान नहीं आता सबको
मेहमान नज़र आता सबको
जब भी तुम अपना समझो
सचमुच वो सबक सिखाता है
धूर्त अपनी आदत नहीं छोड़ता है !
