काश !
काश !


काश ! तुम पत्थर होते
एक बुत बनाता तुम्हारा
उसको सज़दा करता
मिन्नत करता
काश ! तुम पत्थर होते
तब यह एतबार रहता
पत्थर दिल है
पत्थर का खुदा
न दिल पसीजा उसका
तो क्या हुआ
सब्र और ऐहतराम
दोनों ही उस पर
कुर्बान गए होते
काश ! तुम पत्थर होते
नज़दीक भी आकर
तुमसे दूर ही रहता
कुछ तुम्हारी नहीं सुनता
सिर्फ अपनी ही कहता
तुम रूठते भी नहीं
मैं मनाता फिर भी तुम्हें
यह एक बात जो
तब भी आती और
अब भी आती है मुझे
मेरे मानाने से तुम
मान भी जाते
काश ! तुम पत्थर होते