काश
काश
ए काश मेरी खामोशी को तुम सुन पाते,
तो चन्द लम्हे हम संग और जी पाते।
काश वो अनकही बातें तुम समझ पाते,
तो हम अरमानों को अश्कों में ना बहते।
अब भी काश तुम पहले सा हक़ जताते,
तो जज़्बातों पे बाँध हम कभी ना लगाते।
कभी काश मेरी मुस्कान जो तुम खोज पाते,
तो शायद सुकून कभी हम महसूस कर पाते।
काश जो हम हाथ थामे संग चलते,
तो देखते हम जीवन की शाम संग ढलते।।