कांटों भरी राह मंज़िल की
कांटों भरी राह मंज़िल की
किसी और की चाहत में
तूने साथ मेरा छोड़ दिया
क्या नाम दूं इस रिश्ते को
पल में जिसे तूने तोड़ दिया
गर यही मोहब्बत है तो बता
फिर बेवफाई किसे कहते हैं
दिल की दास्तां अभी बाक़ी है
आंखों से आंसू क्यों बहते हैं
रात अंधेरी है ज़रा संभलकर
कांचों के महल सुन रहे हैं
बड़े खुदगर्ज हैं यहाँ के लोग
षड्यंत्रों के जाल बुन रहे हैं
मेरी खामोशी में हर जवाब है
अगर आज कुछ सवाल करो
हर जुबां पर हमारे चर्च होंगे
आज कुछ ऐसा बवाल करो
ख्यालों के झुरमुट से निकल
हकीकत की दुनियाँ को जानो
कांटों भरी है राह मंज़िल की
मर्जी तुम्हारी मानो या न मानो।