कान्हा तेरी याद में
कान्हा तेरी याद में
सारे आँसू जम गये हैं
आँखें भी ना रोते बिलखते
दिल मे दर्द का कोहरा
धड़कनें कम महसुस होते।
लेकिन तुम समाये हो कान्हा
दिल मे धड़कन की तरह
महक जाता तन बदन
चहकता सिहरन की तरह।
तुझे देखा नहीं हूँ कभी,
जानता भी नहीँ तू कान्हा
प्यारा लगता तू इतना क्यों
भूल जाता हूँ सारा जहाँ।
तेरी मुरली की मधुर तानों को
सुनता हूँ रोज़ सपनों में,
तेरी पायलें का रुण-झुण स्वर
गूँजता है मेरे कानों में।
आश्चर्य चकित देखता हूँ
अंधेरी रात को निहार के,
वो भी काली तू भी काला,
तुझे ढूँढू तो ढूँढू कैसे ?
मन मनोस कर पड़ा रहता हूँ
फिर भी तू मानता कहाँ
समा जाता है नींदों में मेरी
यादों में सपनों में जहाँ-तहाँ।
क्या जादू है तेरे नाम में कान्हा
सोचूँ तो ऐसे लगता,
कई जन्मों के प्यासे को जैसे
पीयूष रस धारा मिलती।
जैसे चातक को बून्द बारिश,
अंधे को नैन की ज्योति,
जैसे भूखे को छत्तीस भोग,
जैसे कंगाल को मोती।
जैसे जड़ को वाणी मधुर
पंकज को सूरज ज्योति
जैसे नदिया को सागर
जैसे राज हंस को मोती
एक अर्ज सुन बृज-राज
तेरे सपनों में ही मैं जिऊँ,
तेरी याद में दिन बीते मेरे,
तेरा नाम लिए मर जाऊँ।
ये भव शागर तर जाऊँ।।
