जय जवान जय किसान
जय जवान जय किसान
अथक परिश्रम से अन्न उगा कर, खुद भूखा सोये किसान,
फ़ौजी देश की रक्षा हेतु, कर देता अपनी जान क़ुर्बान।
शत-शत नमन है दोनों को, जय जवान और जय किसान,
शास्त्री जी का दिया ये नारा, भूल गया है हिंदुस्तान।
भोजन खाकर तृप्ति से, घरों में हैं हम चैन से सोते,
किसान धूप में स्वेद बहाते, फौजी बर्फ में जागे होते।
ऋणी हैं हम इन दोनों के फिर, क्यों न मिलता इन्हें प्रतिदान,
क्यों इनका हक़ छीना जाता, यद्यपि ये करते त्याग महान।
नेता, अफ़सर राजकोष से, मुफ्त में हैं सब सुविधा पाते,
वही किसान और जवान, सूखी रोटी से काम चलाते।
परिवार को अपने त्याग कर, फ़ौजी सीने पर है गोली खाते,
फसल का मूल्य न मिलने पर, बेबस किसान रो कर रह जाते।
खेल में मेडल जीतने वाले, पा जाते करोड़ों के इनाम,
सीमा पर लहू बहा कर, फ़ौजी के हिस्से महज सलाम।
भारत माँ के सच्चे सपूत यह, करते प्राणों का बलिदान,
हम सबका कर्तव्य है बनता, दिलाएँ इनको हक़ सम्मान।