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Anonymous Writer

Romance Tragedy

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Anonymous Writer

Romance Tragedy

जुदाई

जुदाई

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देख रात ने जो महफ़िल सजाई है

एक मैं हूं और एक तेरी कमी मौजूद है

पूछती हूं कई बार की कब आएगा तू

हँस कर कहता है चांद,

अपने हिस्से की जुदाई गुज़ार कर

पलट रही सरकारें तू देख ज़रा

एक तेरी यादें है जो इस्तीफा देती ही नहीं

नशे में जब मैं घूमती हूं, शक होता है मुझे

की तेरे प्याले में, कभी इश्क़ था भी या नहीं

बरसों पुराने ख्वाब भी अब पूरे हो रहे है

जो तूने कभी मेरे साथ देखे ही नहीं

जाते ही तेरे, अब खराब सा चलने लगा

बता रिश्वत कितनी, वक़्त ने ली तुझसे

कैसे रोकू, एक के बाद एक ख़तम हो रहे है

जो शोख़ कभी मेरी पहचान हुआ करते थे


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