जुदाई
जुदाई
सज़ा के लबों पर मुस्कान, तेरे ग़म को छुपा जाते हैं हम
महफिलों और भीड़ में अक्सर, तन्हा से रह जाते हैं हम
जब से गये हो छोड़ कर, दुनिया में तन्हा तुम हमको
हो चली है जिंदगी अब, मेरी ये बेरंग सी जुदाई में तुमसे
एक चाँद ही अब रह गया है, गवाह मेरी तन्हाइयों का
साथ रहता है वही अब, हर शब तेरी जुदाई के बाद।

