ज़रा सुनो तो
ज़रा सुनो तो
तुम्हारे चाहने से अगर मिट्टी सोना होने लगे,
बर्फ-सी हो जाए आग, बर्फ़ आग-सी जलने लगे,
फिर तो वही बात होगी कि,
मुँह माँगी बरसात होगी।
नर ना रहेंगे नर, देवों से ही मुलाकात होगी,
नरक सभी बन जाएंगे स्वर्ग,
नहीं कहीं फिर रात होगी।
ये चाहत तुम्हारी क्या वाज़िब है गालिब?
कि खुद को चाहते हो खुदा बनाना,
उसने जो बनाया क्या वो सही नहीं है?
तुमको उसमें गलती दिख रही है?
जो तुमने खुद ये ज़हमत उठा ली,
उसकी सभी दीवारें गिरा दी,
लगे खुद का अलग जहाँ बनाने,
क्यों तुम हुए जा रहे दीवाने?
सब्र ज़रा तुम कर लो मियां,
बाती उसी की तुम, उसी का दिया।
हाथ उठाओ करो अब दुआ,
बख्श दे तुम्हें, तुमसे जो कुछ हुआ,
झुकाओ सर, करो सजदा,
कबूल करेगा वो तुम्हारी हर दुआ।
