जरा सा नेह
जरा सा नेह
संभाषण प्रथम वह तुम्हारा
वह तुम्हारा प्रथम दर्शन,
तुमने कुछ लाईनें लिखीं
पढ़ने के लिए मुझे दिखाईं।
शायद तुम संकोच में थे
तुम कुछ क़ह न पाये
तुम कुछ बता न पाये।
मैं तुम्हें समझ न पाई।
तुम्हारा लिखा देखा मैंने
उसे ध्यान से पढ़ा मैंने,
दो एक पंक्तियॉं थी वे
अंग्रेज़ी में जो लिखी गईं थीं।
"ज़रा सा भेजो नेह मेरी ओर
मैं दूँगा तुम्हें असीमित प्यार,
मैं दूँगा तुम्हें सूर्य की रोशनी
भरपूर सब ओर फैली हुई।
दो थोड़ा सा मुझे प्यार
मैं दूँगा तुम्हें प्रसन्नता
मील दर मील फैली हुई
जिसका नहीं अन्त कोई।"
तुम्हारा ये सपना था
या ये वास्तविकता थी,
क्या तुम्हें पता था अर्थ
या कह रहे थे तुम व्यर्थ।
तुम्हारा क्या विश्वास था
यह तुम ही तो जानते थे,
मैं प्रतीक्षा रत रही थी
तुम्हारी सूर्य रोशनी की।
तुम्हारी मीलों तक फैली
उस अपार प्रसन्नता की,
पर तुम अपना ही लिखा
भूल जाओगे किसे पता था।