जो न समझे दर्द उसको आदमी कैसे कहूँ
जो न समझे दर्द उसको आदमी कैसे कहूँ
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जो न समझे दर्द उसको आदमी कैसे कहूँ
जी सके हम जो नही वह ज़िंदगी कैसे कहूँ ……
आसमाँ पर चाँद निकला हर तरफ बिखरी किरण
जो न उतरे घर हमारे चाँदनी कैसे कहूँ ......
मुस्कुराती हर अदा तेरी सनम जीने न दे
हाल अपने की हमारे बेबसी कैसे कहूँ ……
राह मिल कर हम चले थे ज़िंदगी भर के लिये
मिल सके जो तुम न हम को वह कमी कैसे कहूँ ……
हो गया रोशन जहाँ जब प्यार मिलता है यहाँ
जो न आई घर हमारे रौशनी कैसे कहूँ ।