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संजय असवाल "नूतन"

Tragedy

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संजय असवाल "नूतन"

Tragedy

जन्नत भारत का

जन्नत भारत का

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जहां होती थी जन्नत कभी

आज मुफलिसी की माया है,

इस आतंक के साए में,

हर ओर अंधेरा छाया है,

चारों ओर नफ़रत का बारूद बिछा है,


चारों ओर इंसानियत की लाशें पटी है ,

जिंदगी जन्नत से अब बहुत कटी कटी है,

नफरतें दिलों में अब इस क़दर भरी है,

किसके सीने मे खंज़र चल जाए,

अब किसको पड़ी है,


पहले दिलों, जज्बातों की बात होती थी,

हर दिल में कश्मीरियत की बात होती थी,

लोगों का एक दूसरे के यहां आना जाना था,

पंडितों, बौद्धों, सुफियत में आपसी भाईचारा था,

जन्नत कभी खुशगवार सी लगती थी,

केसर के बागों में खुशबू की बयार सी बहती थी,

गुलमोहर, चिनार शांति का संदेश फैलाते थे,

डल झील में अमन का शिकारा चलाते थे,


पर कुछ चंद लोगों ने सबका चैन छीन लिया,

कभी धर्म के नाम पर, कभी आज़ादी के नाम पर,

कभी जिहाद के नाम पर,

दहशतगर्दों ने इंसानियत को इस कदर भरमाया,

असंख्य ज़ख्म इस जन्नत को दिए,

जो आज तक ना भर पाया,


अब यहां दिलो में बहुत खाइयाँ हैं,

आपस में ही रुसवाईयाँ है,

इस जन्नत की खूबसूरती का ऐसा नाश किया,

जो गर्व था कभी जन्नत बनकर,

उसे जहन्नुम बन के बर्बाद किया।


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