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Amit Mall

Abstract

4.3  

Amit Mall

Abstract

जंग जारी है

जंग जारी है

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पसीने और हाथ के घट्टों से

बुझाता हूँ पेट की आग

भूख और रोटी की

जंग जारी है


शरीर को चाहिए रोटी

रोटी के लिए बिकता है शरीर

अस्मत और मजबूरी की

जंग जारी है


कलियों के साथ

उगते है काँटे भी

उन्हे खिलने के लिए

परिवेश से जंग जारी है


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