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Amit Kumar Mall

Inspirational

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Amit Kumar Mall

Inspirational

लिखना

लिखना

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लिखना मेरी भी एक दास्ताँ

देना मुझे भी कागज का टुकड़ा 

लिखना वह लिखता था 

जब कोई पढ़ता नहीं था 

लिखना वह बोलता था

जब लोग चीख नहीं पाते थे

जबाँ चिपक जाती थी

लिखना वह तब भी विश्वास करता था

जब संदेह किया जाता था

उसकी इयत्ता पर

लिखना वह तब भी इन्सानियत देखता था

जब केवल जाति धर्म वर्ग देखा जाता था

और लिखना वह तब भी परिचय की मुस्कराहट लिये

खड़ा रहता था जब कोई किसी से मिलता नहीं

जब कोई कोई किसी से मिलना नहीं चाहता

किसी को जानना नहीं चाहता।


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લોગિન

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