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बहाव के साथ

बहाव के साथ

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किनारे पर रुककर

सोचता हूँ

क्यों न बहा

मैं बहाव के साथ


जिसमें गति थी

निर्द्वन्दता थी

और साथ था वक्त


जिसमें मौज़ थी

मस्ती थी

और थी बेफिक्री


जहाँ किसी का सीना था मेरा नश्तर था

जहाँ मेरी पीठ थी किसी का चाकू था

न पाप था

न पुण्य था


बिना कवच के

दीवाल की आड़ में

टेक लेकर सुस्ताते हुए

सोचता हूँ

क्यों फिक्रमंद हूँ

सैलाब में बहते हुए घरों को देखकर

किसी को चोंच मारते देखकर


पाप कुछ नहीं है

मन और कार्य की भिन्नता है 

सच केवल एक है

चलना और बहना

और गति के साथ बहना।


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