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Swapnil Ranjan Vaish

Tragedy

3  

Swapnil Ranjan Vaish

Tragedy

जलती हथेलियाँ

जलती हथेलियाँ

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अपने अहं में रहा खुशहाल

परिवार का ना रखता ख्याल

कमाता हूँ बाहर जाकर

मैं हूँ सबसे बढ़कर।


तुम हो रहती घर पर

ना समझतीं तुम बेखबर

मेरी इच्छा का करो सम्मान

ताकि बचा रहे तुम्हारा मान।


पत्नी को ना ये बात ज़रा भी भाई

तुम्हारे अहं से मति तुम्हारी मारी गई

मैं जननी रक्षी तुम्हारे घर की

जो ना हो मेरा साथ

जीवन बिता सकते नहीं।


तुम्हें परिवार का सुख मैंने दिया

अकेले थे, अपना साथ तुम्हें दिया

तुम नहीं मेरे प्रेम के लायक

जा रही सब छोड़ अब। 


अब काटेगा घर बन भयानक

वो चली गयी, बचाने अपना सम्मान

बिन घरनी घर बना वीरान

वो भी बिखर गया जैसे तिनका।


अहं की आग ने घर को भूंक दिया

अब तो बस तमाशा देखना रह गया

आग को बुझाते हुए जल उसका हाथ गया

धुआं हुआ था आशियाना उसका।


जलती हथेलियों की आग अहं से ज़्यादा थी

लौट आओ मेरी प्रियतमा

बिन तुम्हारे मैं अकेला हुआ

समझ गया तुम बिन मैं कुछ नहींं।


एक बार माफ करके सजा दो फिर ज़िन्दगी।।


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