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Swapnil Ranjan Vaish

Others

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Swapnil Ranjan Vaish

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बेटी जब दुल्हन बनी

बेटी जब दुल्हन बनी

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आज बेटी मेरी दुल्हनिया बनी

बचपन की सजी धजी गुड़िया लगी,


बालपन में जो सजती थी

एक परी ही जान पड़ती थी,


कब ये इतनी बड़ी हो गयी

गोद से निकल हृदय में बस गयी,


चूड़ी पायल पहन सोलह श्रृंगार किया

पत्नी ने तभी एक कोर से निकला नीर पोंछ लिया,


मैंने अपनी लाडली की ली बलैया

देख देख उसे भर आईं अँखियाँ


मेरे घर की रौनक है वो

कमल के मकरंद सा महकाए घर को,


सोचा ना था ऐसा भी दिन आएगा

विदाई के दिन दिल ख़ुशी से रोएगा,


आशीष है तू सदा खुश रहे

सुखी तन मन धन से अंजुली भरी रहे।।



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