STORYMIRROR

धुंधली यादें

धुंधली यादें

1 min
838


बचपन की बड़ी याद आती है,

जैसे परत परत कोई किताब खुलती है।


वो बीता वक़्त लौटता नहीं,

पर मन कहे फिर जिए वैसे ही।


उसे कहाँ पता की अब कंधे मज़बूत तो हैं,

लेकिन जिम्दारियाँ भी तो खूब हैं।


फिसलती रेत को कौन पकड़ पाया,

समय ने सबको अपनी उंगलियों पर नचाया।


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Drama