जल बिन मछली
जल बिन मछली
कल एक मछली से मुलाकात हो गई
बातों ही बातों में बहुत बात हो गई
उसने कहा, "अब समुद्र का पानी खारा लगता है"
कभी अपना हाल भी बेचारा लगता है
हमेशा बड़ी मछली से नहीं डरते है
हां, पर जब वो सामने आती है
तो किनारे ढूंढने लगते है
इतनी गहराई में घुटन हो जाती है
कोई नहीं सुनता, जब आंख रोती है
सीपियां, फूल, पत्थर, पौधे
क्या नहीं दिया, इस रंगीन जिंदगी ने
पर शिकायतें भी दी गमगीन जिंदगी ने
सोचती हूं बाहर निकलूंगी तो मर जाऊंगी
और अंदर रहकर ज़्यादा जी नहीं पाऊंगी
कहकर मछली चली गई।
पर मैं सोचने लगी हूं
शायद मैं वो मछली बन गई हूं
तभी संसार से भवसागर में
उदास पड़ी हूं।
जल बिन रहा नहीं जाएगा
रहकर कौन सा कोई सदमा
कम हो जाएगा
खुद को समझाना जरूरी है
हर जीवन की अपनी मजबूरी है।।
हां, हर जीवन की अपनी मजबूरी है।।