जख्म
जख्म
कौन कहता है, मौत आएगी तो मर जाऊंगा
मै तो दरिया हूँ , समंदर में उतर जाऊंगा।
तेरा दर छोड़ के में और किधर जाऊंगा
घर में घिर जाऊंगा, सहरा में बिखर जाऊंगा।
अब तेरे शहर में आऊंगा मुसाफिर की तरह
साया-ए-अब्र की मानिंद गुजर जाऊंगा।
चारासाजो से अलग है गिरा में यार कि
मैं जख्म खाऊंगा तो कुछ और सवंर जाऊंगा।