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Juhi Grover

Abstract

2.8  

Juhi Grover

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ज़िन्दगी

ज़िन्दगी

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जो जैसा है, दिखता ज़रूर है, मगर होता नहीं है,

बस सब दिखावा और ऊपर की चमक ही तो है,

हम बस इसी भ्रम में पूरी ज़िन्दगी बिता देते हैं,

समय के साथ चलना है, बस यही सोचते रहते हैं।


समय रेत की तरह हाथों से फिसलता रहता है,

और हम  हर  बार पीछा करते ही तो रहते हैं,

कुछ तो हो कि ज़िन्दगी बस एक पल में बदल जाए,

नहीं बदलती तो बस बेकार का दिखावा करते हैं।


जैसे के  तैसे  ज़िन्दगी  नहीं&

nbsp; जीना चाहते है,

बस तसव्वुर  का  हर  बार  नज़ारा  करते हैं,

खुद भ्रम में जीते हैं, दूसरों  को भी रखते हैं,

चेहरे पे  हर बार  मुखौटा लगा कर के रखते हैं।


आखिर क्यों ज़िन्दगी को ज़िन्दगी नहीं समझते हैं,

मौत से भी बदतर कर के ही जीना पसन्द करते हैं,

ज़िन्दगी में क्यों सन्तुष्ट  रहना नहीं सीख पाते हैं,

ज़िन्दगी को बस ठीक से जीना ही तो भूल जाते हैं।


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