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संजय असवाल "नूतन"

Fantasy

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संजय असवाल "नूतन"

Fantasy

जिंदगी..!

जिंदगी..!

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जिंदगी क्या है

इसी कशमकश में 

ये बीत जाती है

उलझने लाख सुलझाना चाहें जितना

ये बार बार फिर उलझ जाती है।

कभी शांत भाव से सोचता हूं

इसके बारे में

ये खुशियां कम देती है 

जिंदगी दर्द से कमरा क्यों 

मेरा ही भर देती है ।

जिंदगी तेरे अंदाज ही निराले हैं 

तू क्यों नए रूप धरती है 

कभी रुक रुक कर चलती है

कभी बेतहाशा 

खुद भागने लगती है।

सुना था जिंदगी 

हर कदम पे इम्तिहान लेती है

जो राह से भटके 

उन्हें मंजिल के निशां देती है

पर मेरे बारे में जिंदगी 

तेरा ख्याल क्या है..?

जो दर्द तूने इस दिल को दिया 

बता उसका इलाज क्या है।

जिंदगी कमियों पे पर्दा करती है

हरे जख्मों को भर देती है 

पर जिंदगी 

मेरे जख्म अब तक क्यों हरे हैं..?

दर्द सहते सहते 

ये आंखें आंसुओं से क्यों भरे हैं।

जिंदगी तेरी शर्तों पे 

अब नहीं जिया जाता 

जिंदगी तेरे पीछे 

अब नहीं भागा जाता

जिंदगी मौत गर आनी है तो आ जाए

बेखबर मैं हंसकर

उससे भी रख लूंगा नाता।

जिंदगी अब सब बिखर गया

मैं भी बिखरने को तैयार हूं 

जिंदगी गर तू साथ है तो वाजिब

वरना तेरे बिना भी 

मैं जीने को तैयार हूं।

जिंदगी एक कहानी अधूरी रह गई

दिल में हताशा आंखों में पानी रह गई 

तुझे पाने शिद्दत से 

जो संजोए थे सपने मैंने

जिंदगी मेरी मोहब्बत में फिर क्यों 

कमी रह गई।



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