जिंदगी की एक शाम
जिंदगी की एक शाम
एक शाम जिंदगी, जिंदगी से टकरा गई
देखकर इसके रंग-ढंग वो भी घबरा गई है।
चढ़ी परतों से हटाते-हटाते नकाब
तकल्लुफ में आ गई।
सच-झूठ आईना दिखाते- दिखाते
वह भी चकरा गई।
एक शाम जिंदगी, जिंदगी से टकरा गई
देखकर इसके रंग-ढंग वह भी घबरा गई।
अपनों में अपनों को, ढूँढते-ढूँढते इतरा गई
लेकिन पीठ पीछे चुभते उनके खंजरों से
अपनो को अपना कहने से कतरा गई।
हालातों के मंजरों से करते-करते समझौता
जिंदगी, जिंदगी के फलसफों से शरमा गई।
एक शाम जिंदगी, जिंदगी से टकरा गई
देखकर इसके रंग-ढंग वो भी घबरा गई
जारी रहा हैं और रहेगा महफिलों का दौर
जिंदगी बस जिंदगी के मुद्दों से घबरा गई
केवल तमन्नाओं का दामन थामे जिंदगी
अपने ही मृग मरीचिका से चरमरा गई।
एक शाम जिंदगी, जिंदगी से टकरा गई
देखकर इसके रंग-ढंग वह भी घबरा गई।